ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
पड़े पड़े मैं पुराना शुमार होने लगा
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कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
बाग़ से झूले उतर गए
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिन
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को