हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिन
शुमार नामा-ए-आमाल में नहीं करते
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कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
वस्ल के एक ही झोंके में
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
मंज़र-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है दम-ए-रुख़्सत-ए-ख़्वाब
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल को