एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
हम जो सहराओं की मिट्टी के घड़े होते हैं
Wasi Shah
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Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
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उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे