मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
कम बारिश भी मुझ को काफ़ी हो सकती है
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हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिन
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है
इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं