किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
किसी के हाथ का तकिया थकान खींचता है
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(970) Peoples Rate This
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वाले
बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए
एक होने की क़स्में खाई जाएँ
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है