मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वाले
पराई चीज़ का जो लोग हाल करते हैं
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बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिन
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता