महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
यूँही तो ख़ुद को रक़्स पे माइल नहीं किया
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मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल को
ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान में
बाग़ से झूले उतर गए