उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
किनारे से बंधी कश्ती का मसअला समझे
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दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
एक होने की क़स्में खाई जाएँ
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
ये ए'तिमाद भी मेरा दिया हुआ है तुम्हें