बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
ज़रा भी रंज नहीं है तुझे जुदाई का
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ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से