आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
हम अगर ख़्वाब में भी तुम से लड़े होते हैं
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ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वाले
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था