ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
फूल भेजवाने की गुंजाइश न हो
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प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
मंज़र-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है दम-ए-रुख़्सत-ए-ख़्वाब
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग