गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
क्या ख़बर रास्ता खुले कब तक
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(869) Peoples Rate This
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
एक होने की क़स्में खाई जाएँ
ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
बाग़ से झूले उतर गए
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर