ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
समय को रेल की पटरी के साथ चलने दिया
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दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर
ये कच्चे सेब चबाने में इतने सहल नहीं
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की