ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
लोग आसान समझ लेते हैं आसानी को
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एक होने की क़स्में खाई जाएँ
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग