ऐसी कोई ख़बर तो नहीं साकिनान-ए-शहर
दरिया मोहब्बतों के जो बहते थे थम गए
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ग़म-ए-हयात ओ ग़म-ए-दोस्त की कशाकश में
सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं
हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी
अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात
लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता
कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल
जब आई साअत-ए-बे-ताब तेरी बे-लिबासी की
जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत
हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग
ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए