आप जिस दिल से गुरेज़ाँ थे उसी दिल से मिले
देखिए ढूँढ निकाला है कहाँ से मैं ने
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दिल की आलूदगी-ए-ज़ख़्म बढ़ी जाती है
कुछ हिसाब ऐ सितम ईजाद तो कर
जल्वा दिखलाए जो वो अपनी ख़ुद-आराई का
तुम्हें हँसते हुए देखा है जब से
फूट निकला ज़हर सारे जिस्म में
हमेशा से मिज़ाज-ए-हुस्न में दिक़्क़त-पसंदी है
बनी हैं शहर-आशोब-ए-तमन्ना
क़त्ल और मुझ से सख़्त-जाँ का क़त्ल
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
बचपने की याद
ग़लत है दिल पे क़ब्ज़ा क्या करेगी बे-ख़ुदी मेरी