चुपके चुपके वो पढ़ रहा है मुझे
धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1010) Peoples Rate This
मैं किसी आँख से छलका हुआ आँसू हूँ 'नबील'
किसी से ज़ेहन जो मिलता तो गुफ़्तुगू करते
मुसाफ़िरों से कहो अपनी प्यास बाँध रखें
ज़मीं की आँख से मंज़र कोई उतारते हैं
न जाने कैसी महरूमी पस-ए-रफ़्तार चलती है
सर-ए-सहरा-ए-जाँ हम चाक-दामानी भी करते हैं
'नबील' इस इश्क़ में तुम जीत भी जाओ तो क्या होगा
इस बार हवाओं ने जो बेदाद-गरी की
मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से
गुज़र रहा हूँ किसी ख़्वाब के इलाक़े से
मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ
ख़याल-ओ-ख़्वाब का सारा धुआँ उतर चुका है