Sharab Poetry of Baqaullah 'Baqa'

Sharab Poetry of Baqaullah 'Baqa'
नामबक़ा उल्लाह 'बक़ा'
अंग्रेज़ी नामBaqaullah 'Baqa'

रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम

कल के दिन जो गिर्द मय-ख़ाने के फिरते थे ख़राब

छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के

सीखा जो क़लम से न-ए-ख़ाली का बजाना

रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर

नर्गिस-ए-मस्त तिरी जाए जो तुल बरसर-ए-गुल

मुझे तो इश्क़ में अब ऐश-ओ-ग़म बराबर है

मेरी गो आह से जंगल न जले ख़ुश्क तो हो

कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है

जो जहाँ के आइना हैं दिल उन्हों के सादा हैं

इस लब से रस न चूसे क़दह और क़दह से हम

छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह

चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा

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