कश्तियाँ टूट गई हैं सारी
अब लिए फिरता है दरिया हम को
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वो अंधेरा है जिधर जाते हैं हम
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
यूँ भी होने का पता देते हैं
दुनिया ने हर बात में क्या क्या रंग भरे
बंद कलियों की अदा कहती है
नद्दी के उस पार खड़ा इक पेड़ अकेला
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
दिल जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं है
आस्तीं में साँप इक पलता रहा
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
क्या पता हम को मिला है अपना