ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं
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दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ
मुझे तो होश न था उन की बज़्म में लेकिन
मसरूर भी हूँ ख़ुश भी हूँ लेकिन ख़ुशी नहीं
मैं ढूँढ रहा हूँ मिरी वो शम्अ कहाँ है
इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे
फ़रियाद है अब लब पर जब अश्क-फ़िशानी थी
तुम से शिकायत क्या करूँ
होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ
तुम याद मुझे आ जाते हो
इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं