मैं ढूँढ रहा हूँ मिरी वो शम्अ कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
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ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं
क्या ये भी मैं बतला दूँ तू कौन है मैं क्या हूँ
तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है
ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ
है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
तुझ पर मिरी मोहब्बत क़ुर्बान हो न जाए
लब पे है फ़रियाद अश्कों की रवानी हो चुकी
होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ
ख़ुदा को ढूँड रहा था कहीं ख़ुदा न मिला
आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है