वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
ये जो हो रहा है बजा हो रहा है
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पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ
रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ
दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
हैं वस्ल में शोख़ी से पाबंद-ए-हया आँखें
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
क्यूँ मिरा हाल क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं