सूरज से उस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं
उतरा नहीं है रात का नश्शा अभी तलक
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अब तो इतनी बार हम रस्ते में ठोकर खा चुके
कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर
कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ
ये सब तो दुनिया में होता रहता है
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
उसे इक बुत के आगे सर झुकाते सब ने देखा है
एक नए साँचे में ढल जाता हूँ मैं
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
शायद बता दिया था किसी ने मिरा पता