Love Poetry of Bharat Bhushan Pant
नाम | भारत भूषण पन्त |
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अंग्रेज़ी नाम | Bharat Bhushan Pant |
तू हमेशा माँगता रहता है क्यूँ ग़म से नजात
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा
पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
मैं ने सोचा था मुझे मिस्मार कर सकता नहीं
लाख टकराते फिरें हम सर दर-ओ-दीवार से
कुछ न कुछ सिलसिला ही बन जाता
किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है
ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए
ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल
कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा
कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर
कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे
दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे
दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है
दानिस्ता जो हो न सके नादानी से हो जाता है
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है
आईने से पर्दा कर के देखा जाए
आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ