Sad Poetry of Bharat Bhushan Pant

Sad Poetry of Bharat Bhushan Pant
नामभारत भूषण पन्त
अंग्रेज़ी नामBharat Bhushan Pant

याद भी आता नहीं कुछ भूलता भी कुछ नहीं

तू हमेशा माँगता रहता है क्यूँ ग़म से नजात

सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था

ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो

इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी

हम वो सहरा के मुसाफ़िर हैं अभी तक जिन की

वो चुप था दीदा-ए-नम बोलते थे

सवाब है या किसी जनम का हिसाब कोई चुका रहा हूँ

समुंदरों को भी दरिया समझ रहे हैं हम

सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर

सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे

रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं

क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा

फिर वो बे-सम्त उड़ानों की कहानी सुन कर

पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

कुछ न कुछ सिलसिला ही बन जाता

किसी भी सम्त निकलूँ मेरा पीछा रोज़ होता है

ख़्वाहिशों से वलवलों से दूर रहना चाहिए

ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

ख़ुद पर जो ए'तिमाद था झूटा निकल गया

कहीं जैसे मैं कोई चीज़ रख कर भूल जाता हूँ

कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा

कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को

एक नए साँचे में ढल जाता हूँ मैं

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

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