हँसी 'बिस्मिल' की हालत पर किसी को
कभी आती थी अब आती नहीं है
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अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़
रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
अब दम-ब-ख़ुद हैं नब्ज़ की रफ़्तार देख कर
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
उगल न संग-ए-मलामत ख़ुदा से डर नासेह
हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
मेरी दुआ कि ग़ैर पे उन की नज़र न हो
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे