जब सजीले ख़िराम करते हैं
हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(994) Peoples Rate This
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है
ऐ सजन वक़्त-ए-जाँ-गुदाज़ी है
सजन मुझ पर बहुत ना-मेहरबाँ है
जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं
ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुम्ताज़ है सरापा
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है याद
ख़ाक सेती सजन उठा के किया
होली