ख़ाक सेती सजन उठा के किया
इश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे
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मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
तेरे मिलाप बिन नहीं 'फ़ाएज़' के दिल को चैन
होली
वो तमाशा ओ खेल होली का
एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर
गड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है
बे-सबब हम से जुदाई न करो
जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं