मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
ख़ंदाँ हो कर के गुल की सिफ़त टुक सुख़न में आ
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अबरू ने तिरे खींची कमाँ जौर-ओ-जफ़ा पर
एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर
तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
ऐ सजन वक़्त-ए-जाँ-गुदाज़ी है
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुम्ताज़ है सरापा
धूप सा यू कपूल नारी है
मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया
हुस्न बे-साख़्ता भाता है मुझे
जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं