ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
मिल सभी राम राम करते हैं
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मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया
जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं
गुड़ से मीठा है बोसा तुझ लब का
ख़ाक सेती सजन उठा के किया
जब सजीले ख़िराम करते हैं
तेरे मिलाप बिन नहीं 'फ़ाएज़' के दिल को चैन
बे-सबब हम से जुदाई न करो
मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
यार मेरा मियान-ए-गुलशन है
वो तमाशा ओ खेल होली का