मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर
जग में नई और कुछ पसंद मुझे
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मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया
ख़ूबाँ के बीच जानाँ मुम्ताज़ है सरापा
हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
ऐ यार नसीहत को अगर गोश करे तू
सजन मुझ पर बहुत ना-मेहरबाँ है
धूप सा यू कपूल नारी है
मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
मुस्तमिन्दाँ को सताया न करो
तुझ बदन पर जो लाल सारी है
तेरे मिलाप बिन नहीं 'फ़ाएज़' के दिल को चैन