ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला
'शनास' फिर कहीं मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू हुए हम
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उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम
आहिस्ता से गुज़रो
तुम्हारे ब'अद जो बिखरे तो कू-ब-कू हुए हम
बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज भी कैसे
वो और मैं....
ज़िंदगी अब तू मुझे और खिलौने ला दे
हमारे शजरे बिखर गए हैं
दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना
लहू की लहर में इक ख़्वाब-ए-दिल-शिकन भी गया
ख़ुद-कुशी के पुल पर
दिल-ए-तबाह को अब तक नहीं यक़ीं आया