आज पैवंद की ज़रूरत है
ये सज़ा है रफ़ू न करने की
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Rahat Indori
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शहसवारों ने रौशनी माँगी
जाहिलों को सलाम करना है
ख़त लिफ़ाफ़े में ग़ैर का निकला
मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा
उसे ले कर जो गाड़ी जा चुकी है
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
चलती साँसों को जाम करने लगा
बदन का ज़िक्र बातिल है तो आओ
नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं
ख़ूँ पिला कर जो शेर पाला था
मौत की सम्त जान चलती रही
आप तशरीफ़ लाए थे इक रोज़