ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3311) Peoples Rate This
नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं
परिंदे सहमे सहमे उड़ रहे हैं
कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह
जाहिलों को सलाम करना है
चलती साँसों को जाम करने लगा
नहीं हो तुम तो ऐसा लग रहा है
आप तशरीफ़ लाए थे इक रोज़
सहारे जाने-पहचाने बना लूँ
बदन का ज़िक्र बातिल है तो आओ
उसे ले कर जो गाड़ी जा चुकी है
एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा