सामने झील है झील में आसमाँ
आसमाँ में ये उड़ता हुआ कौन है
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बहुत धोका किया ख़ुद को मगर क्या कर लिया मैं ने
उजड़े नगर में शाम कभी कर लिया करें
याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे
शहर में जीना है चलना दो-रुख़ी तलवार पर
वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर
छाँव की शक्ल धूप की रंगत बदल गई
फूलों को वैसे भी मुरझाना है मुरझाएँगे
अपनी पहचान कोई ज़माने में रख
ज़ेहन की आवारगी को भी पनाहें चाहिए
मंज़र अजब था अश्कों को रोका नहीं गया
सुना है हर घड़ी तू मुस्कुराता रहता है
शहर का मंज़र हमारे घर के पस-ए-मंज़र में है