Heart Broken Poetry of Ghulam Husain Sajid
नाम | ग़ुलाम हुसैन साजिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Husain Sajid |
जन्म की तारीख | 1951 |
हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका
दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं
ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा
ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे
तड़प उठी है किसी नगर में क़याम करने से रूह मेरी
रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे
मेरी क़िस्मत है ये आवारा-ख़िरामी 'साजिद'
मिरे मायूस रहने पर अगर वो शादमाँ है
मैं एक मुद्दत से इस जहाँ का असीर हूँ और सोचता हूँ
किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है
जी में आता है कि दुनिया को बदलना चाहिए
इश्क़ पर फ़ाएज़ हूँ औरों की तरह लेकिन मुझे
हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं
उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी
सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं
सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने
नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए
नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा
नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को
नहीं आसाँ किसी के वास्ते तख़्मीना मेरा
मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी
मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है
मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का
मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है
मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से
मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी
कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से
किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा