अब उसी आग में जलते हैं जिसे
अपने दामन से हवा दी हम ने
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सब से अच्छा कह के उस ने मुझ को रुख़्सत कर दिया
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा
फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
तुम यूँ ही नाराज़ हुए हो वर्ना मय-ख़ाने का पता
रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था
किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं
''अटलांटिक सिटी''
वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं
पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना