मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं
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तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली
अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
देख कर शम्अ के आग़ोश में परवाने को
ज़बाँ पे हर्फ़-ए-शिकायत अरे मआज़-अल्लाह
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
मैं क्या हूँ कौन हूँ ये भी ख़बर नहीं मुझ को
उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी