हफ़ीज़ जालंधरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हफ़ीज़ जालंधरी (page 6)
नाम | हफ़ीज़ जालंधरी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Hafeez Jalandhari |
जन्म की तारीख | 1900 |
मौत की तिथि | 1982 |
जन्म स्थान | Lahore |
ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे
कम-बख़्त दिल बुरा हुआ तिरी आह आह का
कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ
कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा
जवानी के तराने गा रहा हूँ
जल्वा-ए-हुस्न को महरूम-ए-तमाशाई कर
जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ
इश्क़ ने हुस्न की बे-दाद पे रोना चाहा
इश्क़ ने अक़्ल को दीवाना बना रक्खा है
इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले
इश्क़ के हाथों ये सारी आलम-आराई हुई
इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
इन गेसुओं में शाना-ए-अरमाँ न कीजिए
हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके
हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा
हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ
है अज़ल की इस ग़लत बख़्शी पे हैरानी मुझे
इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया
दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे
दोस्ती का चलन रहा ही नहीं
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ
दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था
दिल अभी तक जवान है प्यारे
चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई
ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं
अगर मौज है बीच धारे चला चल