हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
और मैं ने तार तार किया हाए क्या किया
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हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो
हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है