कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
कुछ तिरी रहमतों का है हाथ मिरे गुनाह में
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जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है