रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
तुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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Rahat Indori
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में
हँस हँस के अपना दामन-ए-रंगीं दिया मुझे
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है