गुलों से नहीं शाख़ के दिल से पूछो
कि ये बद-नुमा ख़ार कितना हसीं है
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ग़रीबी अमीरी है क़िस्मत का सौदा
तुझे बातों में लाना चाहता हूँ
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
कुछ मिरी बे-क़रारियाँ कुछ मिरी ना-तवानियाँ
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
मोहब्बत में इंकार कितना हसीं है
जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया