मलाल ज़र्द-क़बाई को धो रहा होगा
ग़म-गुसार
फ़ज़ा यूँही तो नहीं मल्गजी हुई जाती
रात
हज़िर-ग़ाएब
मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है
साहिर
जंगल
तलाक़
तुम्हारे लब पे थी मैं भी
इक जादूगर है आँखों की बस्ती में
माएँ बूढ़ी होना भूल चुकी हैं