शेर की अपनी ख़ुदाई
रीछ के अपने ज़वाबित
भेड़िये का अपना ही क़ानून
उन पर
हर्फ़-गीरी का किसी को हक़ नहीं
मच्छरों को हुक्म है
वो अपनी भीं भीं से ग़रज़ रखा करें
Rahat Indori
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क़द्र-ए-मुश्तरक
मोहब्बत पर यक़ीं था जब
लड़कियाँ और तितलियाँ
मलाल ज़र्द-क़बाई को धो रहा होगा
प्यार ईसार वफ़ा शेर-ओ-हुनर की बातें
कौन बदन से आगे देखे औरत को
इक जादूगर है आँखों की बस्ती में
मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है
माएँ बूढ़ी होना भूल चुकी हैं
साहिर
ग़म-गुसार
प्यास दायरा बनाती है