सफ़ीने डूब गए कितने दिल के सागर में
ख़ुदा करे तिरी यादों की नाव चलती रहे
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मुझ को 'जलील' कौन कहेगा शिकस्ता-दिल
ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे
ख़ला के दश्त में ये तुर्फ़ा माजरा भी है
फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें
जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं
इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी
दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे
आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में
बरसों तिरी तलब में सफ़ीना रवाँ रहा
सीने में चराग़ जल रहा है
मैं न दरिया हूँ न साहिल न सफ़ीना न भँवर