तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना
देर तक रहना तिरा ये आइनों के दरमियाँ
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ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती
मुझ से जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है
चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं