कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े क़रीने से घर को सजा के रखते हैं
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वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है
दिल की हालत पूछने वालो
ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में
ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है
ये तजरबा हुआ है मोहब्बत की राह में
वो जो क़िस्से में था शामिल वही कहता है मुझे