खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
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ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें
चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए
ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
दिल की हालत पूछने वालो
मुझ से जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है
सिर्फ़ ख़यालों में न रहा कर