Ghazals of Hatim Ali Mehr (page 2)

Ghazals of Hatim Ali Mehr (page 2)
नामहातिम अली मेहर
अंग्रेज़ी नामHatim Ali Mehr

ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

दरिया तूफ़ान बह रहा है

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

बुतों का सामना है और मैं हूँ

ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त

ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

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